Tuesday, 12 May 2020

हाथ जो रुका नहीं चलता रहा ___(HINDI KAVITA ) HAATH JO RUKA NAHI CHALTA RAHA..............DINESH CHANDER PANDEY ..GOHUNG DHYAN STUDIO

एक हाथ को पत्थर ने
ललकारा था
उसकी कमजोरी
पर ताना  मारा था

हाथ ने ठाना
पत्थर  को तोडना
एक मुठी बन कर
हाथ पत्थर पे पड़ा
रुका नहीं चलता रहा


पत्थर को घमंड था
अपनी  मजबूती  पर
अपनी ताकत पर
पर हाथ ने भी ठाना था

हाथ ने उसपर प्रहार किया
हाथ को चोट लगी
पर वो रुका नहीं
चलता रहा
पड़ता रहा
उस पत्थर के सीने  पे


हाथ दर्द मैं था
कराह  रहा था
पर वो रुका नहीं
चलता रहा

अब उसका दर्द
रक्त  की धारा का रूप ले
चूका था
पर हाथ को तो जूनून था

वो  तो  मजबूती के  साथ
पत्थर के सीने मैं प्रहार
कर रहा था

और मजबूती के साथ
अब उसका दर्द
भी छु हो गया था
शायद सुन्न हो गया था

अब पत्थर को
डर लगने लगा था
पहली बार उसे
कोई मिला जिसने
उसे ललकारा था

एक कमजोर हाथ
पर उसके लगातार
प्रहार को
सहन करना मुश्किल
होता  जा  रहा था

फिर अचानक
पत्थर का दिल टूटा
एक लकीर उसके
बीच  से झांक रही थी

हाथ की कामयाबी
की झलक
जो धीरे धीरे
और गहरी होती जा रही थी

अब पत्थर को
दर्द होने लगा  था
उसका अंग अंग
इस प्रहार के आगे
टूटने लगा   था

और एक समय आया
जब पत्थर टूट गया
ये हाथ की जीत थी
और पत्थर के घमंड
की हार

अपने पर यकीन
लगातार
बिना थके
अंत तक
जीत तक
हाथ जो रुका नहीं चलता रहा





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